पिता को कोई नही समझ पाता
पिता को कोई नही समझ पाता


मां की लोरी को तो हर कोई समझ जाता है
पर पिता की डांट के पीछे चिंता को कोई नहीं समझ पाता है
मां के पैरों को जन्नत तो हर कोई मानता है
पर बच्चों के अरमान पूरे करने के खातिर फटे जूते पहनने वाले पिता को कोई नहीं समझ पाता है
मां को घर की छत तो हर कोई मानता है
पर उस घर की नींव होते हैं पिता कोई यह बात समझ नहीं पाता है
मां की थपकियो को तो हर कोई समझ जाता है
पर पिता के कठोर व्यवहार के पीछे छुपे असीम प्यार को कोई नहीं समझ पाता है
मां को बेटी की विदाई में रोते हुए देख कर तो सब का दिल पसीज जाता है
पर दूर कोने में खड़े पिता के आंसूओ को कोई नहीं देख पाता है
मां को तो सब चंदा सी शीतल मानते हैं
पर सूर्य रूपी पिता के महत्व को कोई नहीं जान पाता है