पिंजरा
पिंजरा
बंध पिंजरे में खड़ा है पंछी देख रहा है फूल,
कुछ सपने बस सपने रहते है कैसे गया वो भूल?
देखा उसने उस सपने में पिंजरा गया हो खुल,
सोच रहा था कैसे चुकाऊ उस कुदरत का मूल!!
पँख फैलाते चाहा उसने
उडूंगा ऊपर -नीचे,
पर देख के दुनियादारी सब की
छुप गया बादल के पीछे...
भोली आँखें, नादान सपने और साफ था दिल
आप ही सोचों यहाँ उसको अपने जैसा
कौन मिलेगा फिर?
भीनी आँखें, टूटे सपने और छलनी थे पँख
वापिस आया अपने पिंजरे में..साथ में मन के डंख..