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Lichi Shah

Inspirational

4.5  

Lichi Shah

Inspirational

लाडो

लाडो

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आज भी वो दिन याद है

तुम देखने आये थे

पसंद किया था एक दूसरे को

एक दूसरे के परिवार को


आदर देने का वादा किया था

एक दूसरे की भावनाओं को

पसंद -नापसंद को

साथ देने को मक्क्म बने थे


एक दूसरे का

हर सुख दुःख में

सपने पुरे करने में


मैं आयी तुम्हारे घर

अपनेपन की आस लेके

अब एक पीहर है

एक है ससुराल

सोचती रही उम्रभर

मेरा घर कहाँ ?


ज़ब मायके की याद सताए

मम्मीजी बोलते अब यही तेरा घर

ससुराल के लोगों की बात आये

तो में बाहर की

फिर भी संभाला मैंने बखूबी

हर रिश्तों को,


निभाया मैंने उस सात वचनों को

जो विवाह के फेरे में लिए थे

याद है बच्चा तुम नहीं चाहते थे

महत्वाकांक्षी जो थे


परिवार के आग्रह के

सामने में खड़ी रही

तुम्हारे साथ

अपने मातृत्व की

प्यास को समेटकर


उम्र बीतती गई अब <

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कुछ मेडिकल रीज़न से

में माँ नहीं बन सकती

लोगों के मुताबिक बांज हू में

क्या तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं इससमय

मेरे साथ खड़े रहने का ?


नहीं हो तुम मेरे साथ आज क्यों ?

मैं बाहर की जो ठहरी !

तुम्हे साथ आना होगा मेरे

आखिर जीबनसंध्या में हम दोनों ही

साथ होंगे


मेरे सम्मान की रक्षा

करना फ़र्ज़ है तुम्हारा

मेरी ममता आज चीख रही है

इसलिये आज तुम्हें

चलना होगा मेरे साथ

नन्ही जान को गोद लेने


उसे भी तो अपनों ने ही छोड़ा होगा

आज में उसे अपनाउंगी

प्यार दुलार सब दूंगी

लाडली ही होंगी वोह

और हां,


सुन लेना गौर से

उसके ब्याह में दहेज़ ना दूंगी में

आशीर्वाद में अपनी पूंजी से

एक घर दूंगी उसके नाम का

एक रिश्ता दूंगी जो पीहर

और ससुराल से पर हो


ताकि वोह उम्र ना गुज़ार दे

अपना घर और अपने लोग ढूंढने में

तुम्हें साथ देना होगा।


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