पहली मुलाकात
पहली मुलाकात
साथ में बहते दरिया के दो किनारे
एक से थे पर जुड़े कभी नहीं
रातों की बाहों में बातें बतलाते
पर सूरत कभी आईने की देखी ही नहीं ।
बातों - वादों में
किस्सो - हिस्सों में
शामों की ढलती रौशनी में
रातों की अंधेरी छाँव में
किनारे वो जुड़ने की कोशिशों में
खुद को हराने की साज़िशों में
बहने लगे एक तेरी ओर - एक मेरी ओर।
एक ठहरा- से कुछ
तो एक मानो नम-सा
शांत जैसे तालाब के पानी-सा
चुप-सी बातें जैसे कोई गुरबानी-सा
मिले तो सही, कहीं दूर वो
दो से तीन हिस्से हुए
एक तुम, एक मैं और तीसरे
हमारे किस्से हुए ।
दो समंदर एक हुए
कई नदियों के ख़तम कुछ किस्से हुए
कुछ तो अभी भी पीछे छूट गया था
ख़ुद में कुछ घोलना अभी भी बाकी
रह गया था ।
पहली मुलाकात कुछ तो पहेली-सी थी
बात वो सारी कुछ तो मनचली-सी ही थी
दो ज़िन्दगीओ की कुछ साँसे ही तो थी
जो एक तार में बुनने लगी ही तो थी
सर्दी की सबसे गर्म शाम ही तो थी
जब तस्वीर एक तेरी-एक मेरी साथ
में तो थी ही।
दो सांसों को एक लम्हे में डूबा के रखा था
कांच -से साफ पानी में
दिलों के पर्दो से ओढ़ रखा था
चाहें तूफ़ान ही आए
मौसमों ने खुद ही तो उन्हें बचाए रखा था ।
रातों की पहरों में
नज़ारे महोब्बतों की रौशनीओं के
आज भी एक मंज़र बुनते है
आज भी हर शामों में
वो पहली मुलाकात को एक बार
एक और बार याद कर ही बैठते है।