*फीकी तबस्सुम
*फीकी तबस्सुम
*इस फीकी तबस्सुम में लिपटे हुए हम, कुछ खोने का
ग़म कुछ पाने की आश में डूबे हुए हम।
उन गहरे जख्मों से उबरने का प्रयास करते हुए
हम, फिर भी जख्मों को कुरेदते हुए हम, उनकी आंखों में
मोहब्बत ढूड़ते हुए हम, फिर भी ख्यालों में जकड़े हुए हम।
उनकी खुशी से खुश रहने लगे थे हम।
वो अधूरी बातें और उन लम्हों में खोए हुए
हम, उन अधूरी बातों के मुक्कंबल ना होने का ग़म
उन से ख्यालों में बात करने लगे थे हम।
इस फीकी तबस्सुम में लिपटे हुए हम कुछ खोने का
ग़म कुछ पाने की आश में डूबे हुए हम।

