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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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पैमाना

पैमाना

2 mins
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मेरे हिस्से का प्रेम दुःख का रूप लेता जा रहा है और मेरा दुःख मेरी रीढ़ की हड्डियों में पैर पसार रही है जिन्हें ना मैं देख पा रहा हूँ, ना छू पा रहा हूँ और ना ही सहला पा रहा हूँ बस रह-रह कर एक टिस सी उठती है और मैं सहम जाता हूँ, सिहर जाता हूँ।

आज तुम सामने होती तो मैं तुम्हें गले लगाने को कहता क्योंकि मैं जानता हूँ गले लगाकर जब तुम मेरे पीठ को सहलाती तो दुःख स्वत: ही भाग उठता।

वैसे मैं कभी भी उन चीज़ों को लेकर अफ़सोस नहीं करता हूँ जिन्हें मैंने ख़ुद के लिए चुना हो।

अब चाहे उन चीज़ों से मेरी आत्मा ही सिहर क्यों ना जाए,

आसमान से मेरी हिस्से की धूप ही क्यों ना छंट जाए,

चाँद की शीतलता मेरे बदन से कुछ दूरी पर आग का गोला क्यों ना बन जाए अथवा रातों को मेरी नींद ही क्यों ना गायब हो जाए।

यकीन करो इन सब में मेरा या तुम्हारा कहीं भी कोई दोष नहीं है और ना ही इस बार समय का दोष है और ना ही हमारे बीच पड़ने वाली अनगिनत नदियाँ, पहाड़, पठाड़, छोटे-बड़े शहर, कुछ गाँव और बिछड़े हुए अनगिनत प्रेमियों का कोई दोष है।

दोष अगर किसी का है तो वह है

सपनों का, प्यासे होंठों का और थोड़ा सा मेरी इन आँखों का जिन्होंने तुम्हारी आँखों में ख़ुद को देख लिया लेकिन क्या फ़र्क पड़ता है।

मैं तुमसे अनंत दुरी पर हूँ, तुम्हारी आँखें मेरी आँखों से दो तारों जितनी दूरी पर है और हमारी होंठ एक दूसरे से बस एक हाँ भर की दुरी पर है।

अब तुम बताओ हम ज़्यादा दूर है क्या?

और अगर है तो कितना? और क्यों?

कुछ सवालों के जवाब तुम्हें ख़ुद ढूंढने पड़ेंगे और कुछ सवालों के जवाब मैं चाह कर भी नहीं ढूंढ़ पाउँगा।


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