ऑफिस की वो अंजान लड़की
ऑफिस की वो अंजान लड़की


ऑफिस के आज लंच समय में,
दिखी एक लड़की रिमझिम लय में।
उसे देख आंखें मेरी उसे ही देखती रह गयी,
उसकी सुन्दरता की तारीफ करूँ
क्या पलकें छुकना भूल गयी।
हिरणी जैसी चाल में उसकी अलग ही अंदाज था,
उसके हुस्न को देख दिल फिर बेहाल था।
ना उसके हुस्न की चाह थी मुझे
ना उसे पाने का जुनून था,
उसकी एक मुस्कान में मिला
मुझे मेरा खोया सुकून था।
उसके पहनावे की तारीफ करूँ क्या,
पहनावे की बात अलग थी,
लाइट ब्राउन जीन्स थी लिपटी
और गहरे रंग की कमीज थी।
उसका ये रूप देख
शायद समा भी मस्तानी थी,
उसकी जुल्फों को उडा,
हवा भी उसकी दीवानी थी।
उसे देख आँखे मेरी
उसके सपने सजाने लगी,
जुल्फें काली गहरी उसकी
मेरे मन में समाने लगी।
याद है मुझें हाथ में उसका वो फोन भी
बहुत खुशनसीब था,
उसके सुंदर कोमल गालों के
हर वक्त जो सबसे करीब था।
जरूर उसकी खूबसूरती को
ईश्वर ने अलग से तरासा था,
नाम पता कुछ मालूम नहीं बस
उसका हँसता चेहरा बड़ा प्यारा था।
ढूंढेगी कल भी उसे ये आंखें,
उसी समय उसी जगह के फसाने में,
वही तेज़ हो वही नूर हो उसकी
सुंदरता के पैमाने में।