ओ कल
ओ कल
जान तो सब कुछ हो,
अब मान भी लो ये सच्चाई।
क्यों इतने गिले-शिकवे,
क्यों ये रुसवाई।
ना बदल पाते,
ना बदल पाओगे उस कल को।
तो आंसू क्यों,
क्यों ये दिल-लगी।
उस कल की परछाई में क्यों जीना,
क्यों उस कल को जानलेवा बनाना।
हर चीज ना हो पाती हमारी इशारों से।
कठपुतली है हम किसी और के हाथों के।
अब ना ज्यादा सोचो आप,
बस शांत हो जाओ,
क्योंकि इसी में है सवकी भलाई।
