नज़्म : काग़ज़ पर
नज़्म : काग़ज़ पर
करूँगा दर्द को मैं भी बयान काग़ज़ पर
उतार डालूँगा कुल दास्तान काग़ज़ पर
है खूब उसने कमाया है नाम कागज़ पर
मगर हुआ है गलत सा निशान कागज़ पर
रची है कोई न कोई नयी यूँ साजिश भी
अलीम के है बहुत कीर्तिमान काग़ज़ पर
नज़र लगी है सियासत की इस चमन को अब
कभी था मुल्क़ ये भी बाग़बान काग़ज़ पर
है चन्द लफ़्ज़ों का ये सिलसिला तो क्या आकिब'
उतार कर रख देंगे आसमान काग़ज़ पर।
