नयी ऱाह
नयी ऱाह
मैंने अभी अभी ही, मेरी पहचान बनाई हे।
कुछ ठहरे ख़्वाबों में, डुबकी एक लगाई हे।
गहेराइओंसे उठी तरंगो ने, आँख मुझसे मिलाइ हे।
शीत होने चली आग को, हवाओने फिरसे जलाई हे।
उठाके हाथ में कलम फिर से , कागज़ से दोस्ती बढ़ाई हे।
मुजमे में बहेतर हुँ ये बात मैंने आज जानि हे।
"खुश्बू" हुँ काँटो को भेद के, दुनिया मेरी सजाई हे।
जहाँ में रुक सी गई थी, वहाँ से आगे कि मंज़िल की ऱाह नयी बनाई हे।