कविता
कविता
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ढूंढ़ना चाहो गर मुझे तुम कभी तो,
मुझे मेरी मे ढूंढ़ना,
मेरे अनकहे, अनसुने अलफ़ाज़
वही तुम्हे शब्दों की माला में पिरोए मिलेंगे,
जो में भीत रसे थी वैसी ही में तुम्हे
उन कागज़ो में लिपटी मिलूंगी,
अपनी "खुशबू" की एक निशानी छोड़े।
