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Dr. Akansha Rupa chachra

Classics

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Dr. Akansha Rupa chachra

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नववर्ष की पावन बेला

नववर्ष की पावन बेला

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नववर्ष की बेला का आगमन हो रहा है।

दिसंबर से जनवरी का मिलन हो रहा है।

अतं में आगमन का प्रवेश हो रहा है।


दिसंबर के अंत मे नव वर्ष का स्वागत हो रहा है।

जनवरी सुनहरे रथ पर खुशियाँ लिये खड़ा है

दिसंबर भूली बिसरी यादें लिए चला है।


उम्र की डोर से फ़िर, एक मोती झड़ रहा है।

तारीख़ों के जीने से, दिसंबर फ़िर उतर रहा है..

कुछ चेहरे घटे, चन्द यादें, जुड़ गये वक़्त में

उम्र का पंछी नित दूर और दूर निकल रहा है।


गुनगुनी धूप और ठिठुरी, रातें जाड़ों की

गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना सा,इक़ पर्दा गिर रहा है।

ज़ायका लिया नहीं और फ़िसल गयी ज़िन्दगी

वक़्त है कि सब कुछ समेटेबादल बन उड़ रहा है

फ़िर एक दिसम्बर गुज़र रहा है।


बूढ़ा दिसम्बर जवाँ जनवरी के क़दमों मे बिछ रहा है।

लो इक्कीसवीं सदी को बाइसवा साल लग रहा है l

नववर्ष की कोपले खिलने को है।

जनवरी की कली को खिलाने दिसंबर अस्त हो रहा है।

इक्कीस सदी को बाइसवां साल लग रहा है।


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