नवउत्सर्जन की ओऱ
नवउत्सर्जन की ओऱ
बढ़ रही हूँ मैं...
हर दिन अपनी मंजिल की ओर
जहाँ से की थी जिंदगी की शुरूआत
फिर से वही लौट जाने के लिए
बढ़ रहीं हूँ मैं...
जीवन चक्र को क्रमवत पूरा करती
बढ़ती जा रही हूँ सत्य की ओर
एक और नए सफर की तलाश में
बढ़ रही हूँ मैं...
आत्मा को नए धारण के लिए
अनंत यात्रा की ओर
स्वयं ही स्वयं को लिए
बढ़ रही हूँ मैं...
योनियों को पार करती हुई
कदम आगे चलाती हुई
फिर से नव ऊर्जा के लिये
बढ़ रही हूँ मैं...