नशा विनाश का मूल
नशा विनाश का मूल
नशा विनाश का मूल है
घर मे बोता ये बबूल है
फिर लोग नहींं मानते हैं
नशा करते है वो फूल हैं
घर-बार बिक जाता है
वो बेमौत मर जाता है
फिऱ वो नशे को कहता है
ये तो अमृत की बूंद है
नशे में व्यक्ति खुद जलता है
साथ मे परिवार को जलाता है
नशा अंधेरी निशा का खून है
फिर भी आदमी कहता है,
नशे बिना ये जिंदगी फिझुल है
नशे ने लाखों घर बर्बाद किये है
कहीं औरतों के सुहाग ले लिये है
फिऱ कोई क्योंं नहीं कहता है
नशा जीवन की सर्वोच्च भूल है
नशा विनाश का मूल है
सरकार केवल अपनी
इकोनॉमी सुधारती है
वो लोगों की इकोनॉमी
क्यों नहींं सुधारती है
सरकार चाहे तो कर सकती है
नशे को डिब्बे में बंद धूल है
हम जागेंगे, गांव जागेगा
गांव जागेगा, देश जागेगा
हम सब एकजुट होंगे और,
भारत को करेंगे नशा मुक्त है
नशा विनाश का मूल है।
