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Mahwash Fatima

Tragedy

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Mahwash Fatima

Tragedy

नन्ही सी जान

नन्ही सी जान

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माँ की कोख में वो सुन रही थी सब कुछ,

वो आवाजें जो उसके नन्हे कानों में पड़ रही थी,

महसूस कर सकती थी वो मासूम हर एहसास को,

जो उसकी माँ महसूस कर रही थी हर दिन और रात को |

अभी कुछ ही दिन हुए थे उसमे जान आये हुए,

अभी कुछ ही वक़्त हुआ था उसे सांस लिए हुए,

अभी कुछ ही लम्हे हुए थे उसे दिल धड़काये हुए,

अभी कुछ ही देर हुई थी उसे पाँव हिलाए हुए,

कि तभी उसने कुछ ऐसा सुना जिससे वो टूट गयी,

“लड़की है, मार दो इसे,

बोझ है, उतार दो इसे” |

शायद वो उसका ही कोई अपना था,

जो उसकी ज़िन्दगी और मौत का फैसला कर रहा था,

शायद वो खुद ही उसे इस दुनिया में लाया था,

जो अब उसे इस दुनिया से विदा करना चाहता था,

डोली में नहीं, पालकी में भी नहीं,

सिर्फ एक सफ़ेद जोड़े में,

उस फ़रिश्ते को वापस उस ख़ुदा के पास भेजना था,

जिस ख़ुदा ने उसे बनाया था |

उस दिन माँ बहुत रोई, बहुत मिन्नतें की,

बहुत कोशिशें की अपने टुकड़े को बचाने की,

लेकिन सब बेकार, सब ज़ाया था,

उसे तो इस दुनिया में आने से पहले ही जाना था,

कभी न वापस आने के लिए,

बस होना क्या था, एक सुबह उसे सुला दिया गया,

फिर कभी न जागने के लिए,

उसकी धड़कन बंद कर दी गयी थी,

उसकी पहली किलकारी गूँजने से पहले ही,

उसका पहला आँसू गिरने से पहले ही,

उन आँखों से जो कभी खुल न सकी,

उसके नन्हे हाथ, नन्हे पैर, नन्हा सा जिस्म,

सब एक दम बेजान हो चुका था |

वो लौट चुकी थी अपने असली मुकाम पे,

उस परवरदिगार के पास,

अपना कसूर पूछने,

अपने गुनाहों का हिसाब देने,

जो कभी उसने किये ही नहीं थे |

ज़ुल्म तो उसके साथ हुआ था,

नाइंसाफी तो उसके साथ हुई थी,

ज़िन्दगी तो उसकी छीनी गयी थी,

जान तो उसकी चली गयी थी |

बहुत मन होगा उसका भी जिंदा रहने का,

बहुत ख्वाहिशें भी होंगी उसकी,

दुनिया में आने की, दुनिया देखने की,

पर क़त्ल सिर्फ उसका ही नहीं,

उसके अरमानों का भी हुआ था,

गला सिर्फ उसका ही नहीं,

उसके ख़्वाबों का भी घोंटा गया था,

दफ़न सिर्फ वो ही नहीं,

उसकी माँ का दिल भी हुआ था ||


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