तलाश
तलाश
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एक शख़्स ढूंढ रही थी मैं
खोयी हुई शख्सियत में
एक अक्स देख रही थी मैं
धुंधली पड़ी तस्वीर में
न जाने क्या सुन रही थी
ख़ामोशी की ज़ुबान में
कुछ तो महसूस कर रही थी
एक अनछुए एहसास में
नींद तो लौट जाती थी
आँखों की दहलीज़ लांघते ही
कुछ ख़्वाब छोड़ जाती थी
पलकों को झपकाते ही
आंसू तो अब सूख चुके थे
जज़्बातों का सैलाब बहा के
चेहरे पे निशान बन चुके थे
मुस्कुराहटों के एहसान चुका के
ज़िन्दगी से आख़री क्या चाहत थी
उस रात ये सोच ही रही थी मैं
दिल को किस चीज़ से राहत थी
ज़हन में तसव्वुर कर रही थी मैं
गिरकर उठकर फिर गिरकर थक गयी थी
तो कहीं शाये में रुक गयी मैं
शायद कहीं गुम हो गयी थी
खुद की तलाश में खो गयी मैं
गर ठहर जाता वक़्त जो थोड़ा
कुछ लम्हें चुरा लेती मैं
सिमट जाता दायरा जो ज़रा
छिप जाती कभी न वापस आती मैं