नदी का किनारा
नदी का किनारा
तू देख आईना कुछ कहता है,
लबों की सुर्ख कहानिया बयाँ करता है
कोई है जो आया नही बहुत देर से
नदी के उस किनारे से
नदी के इस किनारे को ....
मै बैठा राह देखता हूँ कब से,
लिए छप्पर की कुटिया ,
सावन , रिसती बारिश और
वो किनारा जहाँ से तुम चले गये थे

