नभ की चोटी
नभ की चोटी
मिले राह में काँटे तो मैं फूल समझकर रास्ता पार कर जाऊँ
आये ज़िन्दगी में तूफ़ाँ तो मैं अनुकूल बन सामना कर पाऊँ
दिये सब ने जो ज़ख़्म मैं ख़ुद मरहम बनकर सारे घाव भर दूँ
काट दिए जाएं मेरे पंख तो मैं हौसलों की उँची उड़ान भर जाऊँ
जमीं पर पैर रखकर भी मैं विश्वास से नभ की चोटी चढ़ जाऊँ
चढ़ाई के अवरोधों को पार कर मैं विजय का परचम लहराऊँ।
