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Surbhi Bujethiya

Inspirational

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Surbhi Bujethiya

Inspirational

नारी

नारी

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वो ममता का मंदिर भी है,

वो बहन का सहारा भी है,

वो अर्धांगिनी का रिश्ता भी है,

और मां दुर्गा का अंश भी है,

वो घर के आंगन की हरियाली भी है,

वो ससुराल की नींव भी बन जाती है,

वो मां बाबा की बेटी भी है,

और सास ससुर की बहू भी है,

वो आने वालों की मां,

और साथ वालों की दोस्त भी है,

वो सोने का पिटारा भी है,

और कांच सी चुब जाने वाली चूड़ी सी भी झलकती है,

            इस जीवन के फेर में कई किरदार निभाती है वो,

            हर किरदार पे एक सीख जतलाती है वो।

                 

सहारा दे ना कोई उस ममता को

खुद से अपना संसार बना लेती है वो।

नव दिन दुर्गा सी पुजी जाती वो,

और बाकी में कोसी जाती है।

इस संसार के रहस्य में हर बात पे दोषी ठहराई जाती है वो,

ससुराल के आंगन में पहले दिन लक्ष्

मी सी पूजी जाती वो,

साल भर पराई बताई जाती है वो।

           इस जीवन के फेर में कई किरदार निभाती है वो,

           हर किरदार पे एक सीख जतलाती है वो।

                   

कोई बीमार तो ना है घर में सबकी फिक्र जताती है वो,

खुद की परवाह किए बगैर सारे फ़र्ज़ निभाती है वो,

घर तक सीमित रहे तो सही जतलाई जाती है वो,

बाहर निकले तो घर के संस्कारों के आड़े आ जाती है वो,

हर रिश्ता निभाती है वो बिन वक़्त परवाह जताती है वो,

कुछ ज़िम्मेदारी कांधों पे और कुछ दर्द सीने पे ले मट्टी की रानी माटी में मिल जाती है वो।

            इस जीवन के फेर में कई किरदार निभाती है वो,

            हर किरदार पे एक सीख जतलाती है वो।


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