वो बचपन
वो बचपन
वो चहक बचपन की ना जाने कहां गुम है।
हमारी वो लड़ाई अब कुछ दिनों से बंद है।
कोई रिश्ता आसान नहीं है निभाना,
अब राखी का हो या साथी का।
अगर प्यार के साथ लड़ाई ना हो,
तो रिश्ता शक्कर कम चाय सा लगता है।
और मुस्कुराहट तेरे चहरेे पे ना हो तो,
तो हर खास लम्हा भी अधूरा लगता है।
वो बचपन की लड़ाई कुछ खास होती थी,
ना ज्यादा बात बिगड़ती थी, और ना ही तकरार होती थी।
बस इतना होता था,तू रुला के खुश होता था,
और में रो के खुश होती थी।
वो हर बार मेरी पसंदीदा चीजो को लेकर मुझे चिढाना तुझे पसंद था,
और रो- रो कर पूरा घर सर पर उठाना मेरी आदत।
वैसे तो मुझे रुलाना तुझे पसंद था,
मगर कोई और कुछ कह दे तो उससे सुनाना तेरी आदत।
वो राखी का दिन जिसपे तुम हमेशा रोया करते थे,
मेरे हिस्से की चॉकलेट भी हमेशा खाया करते थे।
मेरी थाली मैं से हर बार एक निवाला चुराया करते थे,
और फिर मुस्कुराकर बताया करते थे।
वो अटखेलियां बचपन की कुछ अनोखी ही थी,
जभी तो हर लड़ाई दो पल से ज्यादा की कभी होती ही नहीं थी।
वो शैतानियां अब भूल तो नहीं गए तुम।
चुप रहते हो कुछ दिनों से कहीं यादें मिटा तो नही रहे तुम।
वैसे रिश्ता मज़बूत है हमारा तुम भूल के भी भुला नहीं पाओगे,
निशानियां घर की दीवारों से हटा नहीं पाओगे,
इस दिल में बनाई हुई जगह हटा नहीं पाओगे।।