नारी
नारी
मुझ में भरा करूणा का सागर
प्रेम की परिभाषा मैं मानी जाती
मैं हूंँ नारी !जग-निर्माता!
सकल सृष्टिजन की जन्मदाता!
मैं ही दुर्गा! मैं ही काली!
सुर-असुर विनाशक धर्म रक्षणीय न्यारी।
फिर भी कोख में मारी जाती नन्हीं बच्ची बेचारी।।
यूं तो पूजती!
मुझे दुनिया सारी!!
फिर भी गिद्ध नजर से
तांके मुझे नर दुनिया सारी !!
मुझ में है सारा संसार समाया
फिर भी मुझे कोई समझ न पाया
सबने मुझे अनबूझ पहेली पाया
धैर्य धरा-सा सबने मुझ में पाया
सबल-सशक्त हूं मानी जाती।
फिर भी जुमलों में सबके हर-दम
अबला ही मैं मानी जाती।