नारी नाम उपासना का!
नारी नाम उपासना का!
माँ के कोख से जन्म लेकर
जब संसार में आता मानव
वह एक होती है नारी
जिससे जीवन है पाता मानव
दर्द सहकर दिन रात जिसने
संभाला अपने गर्भ में
पूरे नौ माह के पश्चात
लाया इस निसर्ग में !
बचपन में बहना संग खेला
साथ मिला, ना हुआ अकेला
हाँ वह है दूसरी नारी
होती जो उम्र भर प्रभावशाली,
भैया के सुखमय जीवन की अभिलाषी
बाँधती है जो हाथो में राखी
सदैव रही जो दुख़ सुख की साथी
बचपन की सुनेहरी स्मृतियों की साक्षी !
फिर होता यौवन का आगमन
प्रिय जो बनती जीवन धन
हाँ है वोही तीसरी नारी
जिसके संग बिताते बाकी जीवन सारी,
बन जाती जो प्रेम की परिभाषा
मधुर जीवन की वो आशा
दुख़ में दूर करती जो निराशा
करती रहती दिन रात जो मेहनत
पाती नहीं अवकाश जरासा !
घर आई जो नन्ही सी परी
हाँ वही है चौथी नारी
रौशन कर देती है संसार
किलकारियों से खुशहाल परिवार
सुबह से शाम तक
बस खेल खिलौना हँसना रोना
रात हो जाने के बाद
मम्मी-पापा के गोद में सोना !
सम्मान के लायक है हर नारी
बुझती नहीँ जो कभी है वो चिंगारी
झेलती रहती है दुख़-दर्द सौ
पर जलती रहती जैसे दिए की लौ
है कामना यही नारी दिवस पर
नारी के नाम कर दो, चार पल
है आज जो हर क्षेत्र में अग्रसर
बनकर इंजिनियर, डॉक्टर
खिलाड़ी, टीचर या प्रिन्सिपल !