Palash Jaiswal
Drama
नारी तू नारायणी
तू ही काली कल्याणी
तू नही अबला है
तुझमे अपार सबला है ।
नारायणी
मेरे मन के युद्ध मुझे तेरी पूजा ना करने देंगे। मेरे मन के युद्ध मुझे तेरी पूजा ना करने देंगे।
दुनिया भर का बोझ उठाए, ये नन्हे नन्हे हाथ मेरे...! दुनिया भर का बोझ उठाए, ये नन्हे नन्हे हाथ मेरे...!
कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना। कभी समय मिले तो, घड़ी दो घड़ी, बेटा, मिलने आते रहना।
मंजिल नाम अपने इस बार कर चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर...! मंजिल नाम अपने इस बार कर चल उठ प्रण कर ना क्षण एक बेकार कर...!
सुना है कभी दौर हुआ करता था पत्थरों का अब तो पत्थर के हो गए हैं लोग। सुना है कभी दौर हुआ करता था पत्थरों का अब तो पत्थर के हो गए हैं लोग।
मजबूरी में करते काम, अशिक्षा का है परिणाम ! मजबूरी में करते काम, अशिक्षा का है परिणाम !
जीवन को जीते रहने का ये, हुनर कहाँ से लाती हो तुम ? जीवन को जीते रहने का ये, हुनर कहाँ से लाती हो तुम ?
छोटी-छोटी इच्छाएं हैं मेरी छोटी सी अश्रुधारा से बनी हूँ मैं एक नदी मेरे किनारो के नाम हैं, स्वाभ... छोटी-छोटी इच्छाएं हैं मेरी छोटी सी अश्रुधारा से बनी हूँ मैं एक नदी मेरे किनार...
मैं पिरोती जाऊं मोती आस के ना जाने क्यूं धागा फिसल जाता है, मैं पिरोती जाऊं मोती आस के ना जाने क्यूं धागा फिसल जाता है,
ख़ुशी तो जी बस इतनी है जब भी सुकून की तलाश में निकलें हैं, किसी ने आज तक धर्म नहीं पूछा मज़ारों में... ख़ुशी तो जी बस इतनी है जब भी सुकून की तलाश में निकलें हैं, किसी ने आज तक धर्म ...
तन्हा-तन्हा रातें अपनी मीठी-मीठी बातें उनकी क्या जाने हम सोच के अपनी आँखों में आँसू भर लाए ! तन्हा-तन्हा रातें अपनी मीठी-मीठी बातें उनकी क्या जाने हम सोच के अपनी आँखों मे...
तुझे नहीं पता पर, ये ज़िन्दगी टिकी ही है तुझ पर...! तुझे नहीं पता पर, ये ज़िन्दगी टिकी ही है तुझ पर...!
कौन है दुनिया मे जिसको ग़म नहीं वो तुम नहीं, वो हम नहीं ! कौन है दुनिया मे जिसको ग़म नहीं वो तुम नहीं, वो हम नहीं !
बिलखती है ख़ामोशी चीख़ता है सन्नाटा पालनकर्ता माँग रहा है दो रोटी का आटा...! बिलखती है ख़ामोशी चीख़ता है सन्नाटा पालनकर्ता माँग रहा है दो रोटी का आटा...!
दो राहें थी, इक घर को इक सपनों की ओर चली...। दो राहें थी, इक घर को इक सपनों की ओर चली...।
इसीलिए तो वह मेरी बेटी भी है और माँ भी। इसीलिए तो वह मेरी बेटी भी है और माँ भी।
लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...। लहरों के बीच अपनी कश्ती में किनारे से दूर बैठा हूँ...।
वो तो खर-पतवार जैसे उग ही जाती बेटियां पत्थरो-दीवार जैसे उग ही जाती बेटियां... वो तो खर-पतवार जैसे उग ही जाती बेटियां पत्थरो-दीवार जैसे उग ही जाती बेटियां...
क़लम की इस पैनी नोंक ने मुझे, शमशेरों से लड़ना सिखा दिया... क़लम की इस पैनी नोंक ने मुझे, शमशेरों से लड़ना सिखा दिया...
आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ? आंखों में नीर भी कह रहा ये शहर इतना झूठा क्यों है ?