नादानी
नादानी
प्यार का पहला दौर
था तबस्सुम सा हसीं
पर न सही जाए
जुदाई दूसरे दौर की
अब तीसरे दौर में
ये बढ़ा देगी आशिक़ी
दीवानगी का अंजाम ऐसा
न आएगा दौर कभी
तमाम कोशिशें थी नाकाम
हक़ीक़त को झुठलाने की
जवाब था वक़्त का फ़ासला
हर सोच के नतीजे का
सब ख़्वाहिशें थी बेबुनियाद
इस मज़बूर दिल की
और इंतज़ार था बेकार
दास्तान-ए-इश्क़ के मंज़िल का
गर होती ये बेवफ़ाई
तो होती मोहब्बत सच्चाई
पर थी दिल की नादानी
समझा ही नहीं ये गहराई।