नादान ये मन
नादान ये मन
ख्बाबों की लड़ियाँ
जुड़ती हमारी सांसों से
उम्मीद बुनी हजारों
हकीकत के किनारे
जुड़ते-जुड़ते
बिखर गये सारे
ये बावरा मन
फिर पिरोने लगा
ख्बाबों की लड़ियाँ
नई उम्मीद
नई किरण के संग
बेसमझ
नादान ये मन
तरंग लेता हजारों
जोड़ता नई ख्वाहिस से
नये पुराने ख्बाबों को
दिल से यह है वादा
जाने नहीं देगें इस बार
बीच मंझधार में
करेगें
अधूरे ख्बाबों को पूरा
- © इला वर्मा
