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मन की आवाज

मन की आवाज

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यह एक जिंदगी की नहीं

यह हर नारी की हार है

फिर से पराजित हुई नारी

हामी भरते हैं हम अपनी आधुनिकता व विकास पर

कद्र नहीं करती समाज नारी की

जुल्म की शिकार होती रहती है नारी

दोषी  ठहराते हम उसको हमेशा

हजारों उंगली उठाते उसकी अदा व पहनावे पर

पर बोलो क्या सुरक्षित है नारी परदे के पीछे

 


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