न पैदा हो हत्यारे
न पैदा हो हत्यारे
कतिपय आदर्शों और नियमों से संचालित होता हर परिवार
इन्हीं के द्वारा निर्मित होते जीवन के आचार-विचार।
संस्कृति और संस्कारों में आबद्ध हैं हम सारे
इन्हीं संस्कारों के ही अनजाने में हो जाते हैं हम हत्यारे।
दिली दुश्मनी दो व्यक्तियों में बढ़ाती है बहुत दूरियाँ
मनमुटाव से कहा सुनी और चरम सीमा है कि चलें छुरियाँ।
पहले संस्कारों को मारते फिर इंसां इंसां को मारे
कुछ इस प्रकार जन्म लेते हैं दुनिया में हत्यारे।
हत्या चाहे ज़मीर की हो संस्कारों या मानव की
हर हत्या के पीछे होती हत्यारे की प्रवृत्ति दानव की।
सुन्दर सोच सकारात्मक दृष्टि मनुष्य का व्यक्तित्व संवारे
यदि हो सुप्रयत्न दुनिया से मिट ही जाएंगे हत्यारे।