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Suresh Koundal 'Shreyas'

Abstract

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Suresh Koundal 'Shreyas'

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मुसाफ़िर परिंदा

मुसाफ़िर परिंदा

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मेरे दिल के कोने में वो " परिंदा" घौंसला बना बैठा,

मैं मजबूर इश्क़ में अपना "आशियां" गवाँ बैठा ।


मुझे मालूम भी था वो हमसफ़र नही इक मुसाफिर है ,

जाने क्यों फिर भी उससे अपना दिल लगा बैठा ।


प्यार के फूलों से उसके वास्ते  सुंदर बिछौना सज़ाया,

दुःखों के तापों से सहेजा, गमों की बारिशों से बचाया ।


इक दिन आसमाँ में उसे ,अपना काफ़िला नज़र आया,

मेरे दिल के घरौंदे में वो , कुछ इस कदर छटपटाया ।


घुटन के एहसास से वो परिंदा, कुछ यूं उमड़ बैठा ,

मेरी प्यारी सी पनाह को वो कैद समझ बैठा ।


उड़ गया वो परिंदा फिर मुड़ कर न आया ,

मेरा प्यारा सा आशियाँ उसे रास ना आया ।


अजीब सी असमंजस में है आज मेरा व्यथित मन,

इक अजनबी के लिए सिरहन में है मेरा तन बदन ।


ना साथ आज किसी का, ना कोई है सहारा ,

ना आज मैं उस का ,ना था वो " बेपरवाह" हमारा ।


क्यों ख्वाब उसके मैं , अपने दिल में सज़ा बैठा ,

 क्यों वो "मुसाफिर परिंदा" मेरी जान बन बैठा ।।



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