"मुलाक़ात"
"मुलाक़ात"
दिलों में शिकवे जो हों तो उस को भुलाने आजा
दूरियां हों जो अगर तो उस को मिटाने आजा,
इक बार मिल के करेंगे फिर हम शाम रंगीन
न हो जो आने का मन तो टहलने के बहाने आजा,
न आना हो जो तुम्हें तो ये बुरी बात नहीं
फिर भी इक बार मुझे वजह उसकी बताने आजा,
अपना पता तुम्हें न खबर मंजि़ल की मुझ को है
आ उन्हीं ख्वाहिशों को इक बार सुनाने आजा,
न जाने कब हो ऐसा इत्तफाक के हम फिर से मिलें
कम से कम यही सोच के दिल बहलाने आजा।