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Praveen Gola

Abstract

4  

Praveen Gola

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मत्स्यांगना की महिमा

मत्स्यांगना की महिमा

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मत्स्यांगना की धूम में जगमगाती धारा,

जलधर में महाकाव्य सृजती उभारा।


मत्स्यांगना, हे जलकन्या सुंदरी,

सजती है तेरी सौंदर्य विभूषित मुंदरी ।


तेरे चरणों में बसे जल की मेघा भी,

जगमगाती रेखाएं, लहराती लहरा भी।


तू संसार को जीवन देती है जल से,

सृष्टि के रचयिता, यह सब तेरे तेज से।


पानी की गहराई में तू सोने की हुंकार,

मत्स्यांगना, हे जलरानी, जीवन की तुम हो पुकार।


तेरे पंखों में छिपा अनंत समुद्री सागर,

जीवन का ज्ञान, संसार को देता विस्तार।


तू जलते हुए सूरज की अद्भुत छाया,

मत्स्यांगना, तेरी सौंदर्य अविरल है प्रभाया।


सृष्टि की जीवनदाता, तू ही सर्वदा जीती है,

अपने स्वयं को बचाने, तू सदैव अश्रु पीती है।


मत्स्यांगना, तेरी महिमा अविरल है अद्भुत,

जल के राजा, तू ही है नैर्मल्य का संग्रहश्रुत।


तू संसार में संचालित करती है नयी उमंग,

मत्स्यांगना, हे जलधारा, तेरे हैं हम सब संग।।


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