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Ashish Tyagi

Abstract

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Ashish Tyagi

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मरकज और कोरोना

मरकज और कोरोना

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अगर चिढ़ते हैं तो चिढ़ने दो, मेहमान थोड़ी है

ये सब हैं जाहिल, अब्दुल कलाम थोड़ी है


फैलेगा कोरोना तो आएंगे घर कई ज़द्द में

यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है


मैं जानता हूँ देश उनका भी है लेकिन

हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है


हमारे मुंह से वही निकलेगा जो सच है

हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है


जो आज मरकज में फैलाए हैं कोरोना

किराएदार है जाती मकान थोड़ी है


बुलाते हैं मरकज में फैलाते है कोरोना

हिंदुस्तान इनके खाला का मकान थोड़ी है?


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