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THE KAVI ✍️🕊️

Tragedy

4  

THE KAVI ✍️🕊️

Tragedy

मर्द

मर्द

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गुजरा है वो भी कई मुसीबतों से,

लड़ा है वो खुद की खामोशियों से,

कुछ बातो को कुछ यादों को यूहीं दबाए हुए रखा है ।

कई सवालों को यूहीं छुपाए हुए बैठा है।।

वो मर्द हर रात गीले तकिए के नीचे अपना सर झुकाए सोया है।।


ना किसीको कुछ कह सकता है,

 ना थोड़ा सेह सकता है,

मन में कई कड़वे सच और

 जुबा पे कुछ जूठ दबाए बैठा है,


अकेले में अपनी आंखे गीली करके 

वो भीड़ में भी मुस्कुराहट लेके चला है,

हा वो मर्द हर रात गीले तकिए के नीचे

अपना सर झुकाए सोया है।।


अपनों के ताने और दोस्तो के सहारे (२)

उसने हर त्योहार को शान से मनाया है,

लफ्नगा, लुच्चा, निकम्मा चाहे जितना भी हो,

फिर भी समय आने पर अपनी जिम्मेदारियों से

 ना कभी वो पीछे हटा है।।


भूतकाल को भूल कर वर्तमान में जीता है,

भविष्य की चिंता में पूरे दिन रात एक करता है,

फिर भी दुनिया की नजरो में 

मर्द तो बाजार में ही एश करता है।।


चुभती गरमी में अपने गुस्से को शांत करते हुए देखा है,

बर्फीली ठंडी में रात के घनघोर अंधेरे में से अकेले घर वापस जाते देखा है,

बरसते बादल के संग अश्रु को अपने बेहते हुए देखा है,

हा मैने कई मर्द को कोने में चुपके से रोते हुए देखा है।।


आंखो मे गहरी नींद और चेहरे की थकान 

फिर भी होठों पे एक हल्की मुस्कान रखता है,

थका हारा है चाहे जितना भी फिर भी

परिवार के साथ खेलते हुए देखा है

हा वो मर्द हर रात गीले तकिए के नीचे 

अपना सर झुकाए सोया है

वो मर्द गीले तकिए के नीचे अपना सर झुकाए सोया है।।।



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