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Vinita Rahurikar

Abstract

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Vinita Rahurikar

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मोहरा

मोहरा

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मोहरा बनाकर

उतारा है धरती पर

तूने ऐ जिंदगी।


कदम भी उठाऊँ

तो तेरी मर्ज़ी से

कभी एक घर

कभी ढाई घर।


कभी कदम गलत उठा

तो तू छोड़

देती है साथ।


उतार देती है नीचे

जीवन की बिसात से

मोहरे बन हम,


चलते हैं एक-एक घर

तेरे ही हिसाब से.....।


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