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Aarti Kashyap

Abstract

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Aarti Kashyap

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मंज़र

मंज़र

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यह कैसा मंजर है??


जहाँ हर हाथ के साथ

डर चलता है,

रास्ता रंग बदलता है,

और....दिल ज़ोरो से धड़कता है।


ये कैसा मंज़र है?


दरिया का एक छोर

दूसरे से मिलने को कहता है,

सूरज सोने को कहता है,

और...चाँद पिघलने को कहता है,


यह कैसा मंज़र है??


जहाँ कांच टूटने से डरता है,

रोशनदान रोशनी से लड़ता है,

पानी अनाज़ सा बिखरता है,

और ..वक़्त तालाब से ठहरता है,


यह कैसा मंज़र है???


हवाओं के पैर बेड़ियो में बंधे है,

सपनो का ज़हर ज़हन में घुला है,

अश्क़ों को आँखों से गिला है,

और...अंधेरा आकिर बना है।


शायद!!!

यह वो स्तिथि है..

जहाँ तिनका तिनका अपनी

मर्ज़ी से जुदा है,

और ज़िन्दगी मुस्कान से खफ़ा है।


यह वी मंज़र है..

जहाँ इंसान बिखरा खड़ा है,

एक किस्से को ना जाने किससे

जोड़ रहा है!!!!

यह वो मंज़र है।।।

यह वो मंजर है।



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