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Vrajlal Sapovadia

Abstract

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Vrajlal Sapovadia

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मंत्री

मंत्री

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पसंद नहीं था पढ़ना हमें 

काम करने में दिल भमे 


हुकम करने का व्यसन  

इसीलिए करते हैं शासन 


मंत्र पढ़कर बने थे मंत्री

पंडित को बनाया संत्री 


मेह्नत करते हैं दिनरात 

बिन सत्य है रहती बात 


झूठ बोलने की ली शिक्षा  

वादा करने की बड़ी दीक्षा 


काम नहीं निभाना वादा 

सामने हो नर या मादा 


मीठा बोलना कर्म हमारा 

ज़हर पचाना काम तुम्हारा 


पसंद नहीं था पढ़ना हमें 

देश विदेश लोग सब नमे !


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