मंथन
मंथन
ये बारिश की बूँदें हल्की सी
रिमझिम बरसतीं हैं जब भी
गुनगुना कर नज़्म कोई नई
छेड़ देती हैं तराना प्यारा सा
तभी धवल चाँदनी बिखेर चंदा
याद दिला जाता है सुर्ख रातों की
स्मृतियों में जहाँ सोये पड़े धूमिल से
गुजरे पलों के सुखद अफसाने कई
रह न पाते थे कुछ पल भी बिना हमारे
प्रेम था शायद यही समझ न पाये हम
क्या बीतती होगी विचार करती हूँ अब
क्रूर हाथों में सौंप निश्चिंत से हो गये थे
सोचा था ठीक हो कर घर आओगे
जीवन फुलवारी फिर से महकेगी
मिलन की आस रह गयी अधूरी
जब हमसफ़र चल दिये तुम वहाँ
जहाँ से लौट कर न आता कोई यहाँ।