मंदिर जाने का अभिप्राय
मंदिर जाने का अभिप्राय
लोग पूछते हैं: क्यों नित मंदिर जाते हो?
क्या कारण है, क्या अभिप्राय लाते हो?
हमारा जवाब सुनो, बड़ा ही सरल है,
यही हमारे जीवन का अमूल्य फल है।
पहला तो यह कि ईष्ट को देखे बिना,
आँखों को मेरे चैन कहाँ मिलता सजना।
दूजा ये, उनके दर्शन की ही बात है,
जो हर पीड़ा सहने की शक्ति साथ है।
जब तक न निहारूँ वो मूरत प्यारी,
तब तक ये दुनिया लगती है भारी।
उनका दीदार ही देता है बल,
हो जाए सहज हर मुश्किल का हल।
