" मन की उड़ान "
" मन की उड़ान "
हम दूर गगन में उड़ जाते हैं, कभी अरुणांचल हो आते हैं !
झट से कश्मीर की घाटी का, हम विचरण कर आ जाते हैं !!
आँखों से हिमाचल हटता नहीं, मौन पड़ा कुछ कहता नहीं !
काँगड़ा ने हमको मोह लिया,सपनों में भी कुछ कहता नहीं !!
लखनऊ को भला भूले कैसे ? अदब सिखाया हमको ऐसे !
सरजमीं उसकी याद आती है, फिर उसको हम देखें कैसे ?
झांसी की फिर याद आ गयी, अंगों में फिर प्राण आ गया !
रानी को हम नमन किये, ध्यानचंद जी का नाम लिया !!
पहुँच गए हम पुणे क्षण में, यादें हमारी खिल सी गयी !
लेजिम डांस वहां का सुन्दर, गणपति पूजा फिर होने लगी !!
मन तो बड़ा चंचल होता है, कभी यहाँ रहे कभी वहां रहे !
सुने में जब कुछ नहीं मिलता, तब मन अपनी कोई बात कहे !!
अरुणांचल से आसाम करीब, मन को हम ना रोक सके !
पहले दूर देश जा के हम तो, राह में हमको ना टोक सके !!
यह मन जाने ना कोई जान सके, मन की उड़ान ना पहचान सके !
कभी उड़ जाये कभी उछल जाये,कहना किसी की ना मान सके !!
