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मिलन

मिलन

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यादों के रेशमी लिहाफ में
अब तक गीली है
वो गुलाबी सर्द दोपहर
जब कतरा-कतरा
तुम्हारे लबों की नमी
मेरे जिस्म पर पिघल रही थी
और तुम्हारे जिस्म की
संदली खुशबू
हौले हौले साँसों से होकर
मेरे पूरे वजूद में घुल रही थी...

बंद आँखों से हमने तब
पहली दफा इश्क़ चखा था
और तमाम उम्र का फासला
कुछ लम्हों में तय कर आये थे
उस क्षण वक़्त भी थक कर
घड़ी भर को ठहर गया था ...

आज भी जब कभी
वो लिहाफ छू जाता है
तो मेरे जिस्म से
तुम्हारे बदन की वही
ताजी संदली खुशबू
जाग उठती है शोना!!


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