मिली
मिली
वसंत में जब अंबर नीला और वसुधा पुष्प सी खिली
वहीं राघव और वीणा के घर पैदा हुई नन्हीं सी मिली
तन मन प्रसन्न मंद मुस्कान किलकारी से गूंजा आंगन
दिन बदला उत्सव में उपहार बधाई देता हर जन जन,
इंच बढ़ी तो बोलन लागी बड़ों से मिला ज्ञान ध्यान
पाठशाला मंदिर समान संकल्प से मिला प्रतिज्ञान
सुघड़, कुशल, चतुर , बुद्धिकौशल से मिला सम्मान
मात पिता का वैभव बनी गर्व से बढ़ाया उनका मान,
और बढ़ी जब साहस किया, बोला और भी पढ़ना है
उच्च शिक्षा हेतु मेहनत की है मुझको मां आगे बढ़ना है
हुई तैयारी भरोसा तो विदेश जाने का अवसर आया
सपने संग लिए मिली को अब मीलों उड़ना है,
नई जगह नया माहौल पर बिल्कुल ना घबराई मिली
बने दोस्त नए पर कोई जैसे और करीब आने को था
वो खास था साथ उसका प्यारा नैनों में समाया था
उसके बिना ना चैन था ना जाने कैसा आकर्षण था,
मुलाकातें बढ़ीं इश्क का सिलसिला आगे बढने लगा
समय बीता आखरी साल में अब उनको निर्णय लेना था
घरवालों को बोला, मिली स्वीकृति तो बात आगे बढने लगी
सहसा कुछ एसा हुआ जो बिल्कुल अविश्वसनीय था,
जिसे अपना समझा था, वो छल भरा कपटी निकला
एक रात में लाज उतारी दुष्ट ने यूं अरमानों को कुचला
विश्वास के पुल टूटे जब मानव रूप में भेड़िया निकला
अबला बन ना सहना है भीतर से निकली लाल ज्वाला,
घुमाया फोन पुलिस को उसे कैद में बंद करवाया
कालिख अब उसके मुंह पर थी ऐसा दंड करवाया
नारी के मन तन से प्रीत से विश्वास जो नर खेलेगा
हश्र भारी कठोर सोच ले जब उस संग रण में उतरेगा,
क्या प्यार करना पाप है प्रीत की अभिव्यक्ति श्राप है
सच्चे भाव पर बुरी नज़र डालना बड़ा अभिश्राप है
नारी हंसे खुश हो अगर तो अपनी संपति समझते हैं
आजकल के पुरुष संभोग को आम बात समझते हैं,
प्रीत को प्रीत मिलती से घृणा दुष्कर्म को सजा
नारी कोई भोग विलास वस्तु नहीं सबसे है रज़ा
अत्याचार को सहना भी गलत है सब जान लो
नारी ना सहेगी ना झुकेगी बस मन में ठान लो,
"मिली..से सीख लो निसंकोच निडर बनो
ना डरो घबराओ प्रीत के ताने बाने बुनों।"
