"मिच्छामि दुक्कड़म"
"मिच्छामि दुक्कड़म"
मिच्छामि दुक्कड़म, से हल्का होता मन है
जब सामने वाले से मांग लेते क्षमा हम है
मिच्छामि दुक्कड़म कहो, वर्ष में एकबार,
फिर देखो, कितना अच्छा लगता दुश्मन है
जैनियों का यह बहुत ही अच्छा चलन है
मिच्छामि दुक्कड़म से हल्का होता मन है
खास गलती होने पर, वर्ष में एकबार नही
गर हरदिन ही मांग ले साखी क्षमा हम है
अहंकार रावण का कैसे न होगा, दहन है?
क्षमा मांगने से बढ़ते बहादुरी के कदम है
मिच्छामि दुक्कड़म, वीरस्य आभूषणम है
पवित्र दिल बोलते, मिच्छामि दुक्कड़म है
जिसमें होता माफी मांगने का दम है
यह पर्युषण के अंतिम दिन की पवन है
मिच्छामि दुक्कड़म वाले होते सिंघम है
मिच्छामि दुक्कड़म से खत्म होते, भ्रम है
यह जख़्मी रिश्तों पर लगाता मल्हम है
मिच्छामि दुक्कड़म ऐसा शब्द दीपम है
जिससे मिट जाते घने अंधियारे तम है
यह जैन क्या सब के लिये ही शुभम है
इससे होता रिश्तों में मृदुता का जन्म है
मिच्छामि दुक्कड़म बोलो, सब ही बोलो,
गर्म तप्त लोहा भी होगा, शीतल शबनम है
मिच्छामि दुक्कड़म, से हल्का होता मन है
यह हृदय से निकला, पश्चाताप करम है
जाने में या कोई गलती अनजाने में हो
एकबार बोले, सब मिच्छामि दुक्कड़म है
फिर देखो कैसे खिलता नफ़रत उपवन है
मिच्छामि दुक्कड़म तो एक ऐसा दर्शन है
इससे फैलता दुनिया में भाईचारा उत्तम है
मिच्छामि दुक्कड़म, से हल्का होता मन है
इससे, अमावस में उग आता, चंद्र पूनम है।
