महफ़िल की यारी
महफ़िल की यारी


महफ़िल जब लगी थी यारों की,
हमको भी बुलावा आया था।
कैसे न जाते हम,
उनकी कस्मे देकर जो बुलाया था।
फिर कहने को कुछ कहा गया,
तो ख्याल उनका ही आया था।
तब लफ्ज़ लफ्ज़ जोड़ कर मेने ,
दर्द ए दिल सुनाया था।
तो आंसू उनकी यादों के,
ना ना करते निकल
जो समझे वो खामोश रहे ,
बाकि वाह वाह करते निकल गए।