Kumari Subham
Tragedy
कुछ शब्दों में वर्तमान स्थिति का स्पष्ट चित्रण-कोरोना काल, सब बेहाल
महामारी
उनके बीच में बोलने पर बेटों की आवाज चढ़ती है उनके बीच में बोलने पर बेटों की आवाज चढ़ती है
मेरी आँखों में जो पानी है सब अपनों की मेहरबानी है। मेरी आँखों में जो पानी है सब अपनों की मेहरबानी है।
तो कहीं न कहीं ये एहसास सा होने लग जाता है दिल को कि तो कहीं न कहीं ये एहसास सा होने लग जाता है दिल को कि
ऐसा आश्चर्य मुझे हुआ देखा इस सर्दी में कोई रोता हुआ। ऐसा आश्चर्य मुझे हुआ देखा इस सर्दी में कोई रोता हुआ।
कड़ुवाहट हृदय की शब्दों में ज़ब लगी भरने, तब मध्यपान को तिलांजलि दे ही दिया हमने ! कड़ुवाहट हृदय की शब्दों में ज़ब लगी भरने, तब मध्यपान को तिलांजलि दे ही दिया हमन...
खुद के लिए जीने का एक ख्वाब ... मेरी सपनीली आँखों में भी बसा हुआ है। खुद के लिए जीने का एक ख्वाब ... मेरी सपनीली आँखों में भी बसा हुआ है।
अच्छा है, पापा, अब कम सुनते हैं अच्छा है, पापा, अब कम सुनते हैं
जाड़ों के महीनों की कथा क्या लिखूँ ठिठुरती रातों की व्यथा क्या लिखूँ। जाड़ों के महीनों की कथा क्या लिखूँ ठिठुरती रातों की व्यथा क्या लिखूँ।
कभी गोह में फंसे महीनों कभी धार में बह गए हम।। कभी गोह में फंसे महीनों कभी धार में बह गए हम।।
बचपन को बिदा कर, तरुणाई मे रखा था कदम। बचपन को बिदा कर, तरुणाई मे रखा था कदम।
कटु शब्दों की इस दुनिया में मै, अमृत की नदियाँ बहाता हूं। कटु शब्दों की इस दुनिया में मै, अमृत की नदियाँ बहाता हूं।
अकेला चल पड़ा हूँ मैं कोई नहीं साथ है मेरा अकेला चल पड़ा हूँ मैं कोई नहीं साथ है मेरा
मौत उतनी ही, बेरहमी से जिंदगी को , अपनी चोंच में धरती है। मौत उतनी ही, बेरहमी से जिंदगी को , अपनी चोंच में धरती है।
अगर किसी की ज़िंदगी में, जुदाई न होती। तो कभी किसी को किसी की, याद आई ना होती। अगर किसी की ज़िंदगी में, जुदाई न होती। तो कभी किसी को किसी की, याद आई ना ...
चुपचाप सबकुछ सह लूंगी, जरा भी नहीं मैं घबराऊंगी। चुपचाप सबकुछ सह लूंगी, जरा भी नहीं मैं घबराऊंगी।
रोजाना मिलकर भी एक दूसरे को मिस किया करते थे रोजाना मिलकर भी एक दूसरे को मिस किया करते थे
दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी … मैं मेहनतकश !! दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी … मैं मेहनतकश !!
सूरज सहमा लगता है कोहरे वाली सुबह सुहानी। सूरज सहमा लगता है कोहरे वाली सुबह सुहानी।
बादल की गर्जन के जैसे रोई होगी कवियों की आत्मा जिस दिन साहित्यकार सत्ता के आगे झुक गया। बादल की गर्जन के जैसे रोई होगी कवियों की आत्मा जिस दिन साहित्यकार सत्ता के आगे झ...
मैं बदला नहीं, समझदार हो गया हूँ, मेरे दर्द से हर किसी को दर्द नहीं होता। मैं बदला नहीं, समझदार हो गया हूँ, मेरे दर्द से हर किसी को दर्द नहीं होता।