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Supriya Devkar

Abstract

3.3  

Supriya Devkar

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मेरी पहचान

मेरी पहचान

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मेरी पहचान है मुझसे 

दिल ये मेरा कहता है

आज की नारी हूँ मैं 


हर शख्स यही केहता है 

हर क्षेत्र मे रखा है कदम 

नही पिछे हटेंगे हम


किस्मतों को आजमाकर

सबको दिखाऐंगे हम

तरक्कीके रास्तों पर 

निकल पड़े हैं हम

हौसले हैं बुलंद 


सबको लेके चले हम

चूड़ियाँ जरूर पहनते हैं

पर कमजोर नहीं है हाथ

नहीं सहन करेंगे हम

अत्याचार किसी के साथ।


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