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Amit kumar

Inspirational

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Amit kumar

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मेरी माँ

मेरी माँ

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भटक रहा हूँ तड़प रहा हूँ बिन माँ के मैं शिशक रहा हूँ 

सर्द हवा में बिन कपड़ों के जैसे मैं हां ठिठुर रहा हूँ 

अब कौन पहनाये मुझको कपड़ें और कौन संभाले मेरे बाल 

बिन माँ भूखे पेट पड़ा हूँ कौन लगाए भोजन थाल 

अब कौन उठाये सुबह मुझे कौन धुलाये मेरा मुँह 

जिन पैरों से चल न पाऊँ उन पैरों की जान थी वो 

ऐसी थी वो मेरी माँ ....

बिन पानी क्या मछली तड़पे उस से ज़्यदा तड़प रहा हूँ 

एक दिन मेरी माँ आएगी इसी आस में भटक रहा हूँ 

ठोकर खा कर मैं गिर जाऊँ पर तेरे हाथ तक पहुँच न पाऊँ 

थी जिस हाथ की ऊँगली मेरा सहारा वो ऊँगली अब थाम न पाऊँ 

अब आँख के आँशू रोक न पाऊँ बिन तेरे माँ मैं मर जाऊँ 

तेरी गोद को तड़प रहा हूँ बिन तेरे माँ सिसक रहा हूँ 

अमृत से मीठा दूध था जिसका ऐसी थी वो मेरी माँ 

अब कौन पिलाये मुझको दूध क्यों छोड़ गई तू मुझको माँ 

रात अंधरे से डरता था और तेज हां मैं रोता था 

माँ का हाथ जब ऊपर आता सारा डर फिर यूँ खो जाता 

ऐसी थी वो मेरी माँ ...

माँ का आँचल मेरा जीवन जिसे ओढ कर मैं सोता था 

वो आँचल अब कहाँ मिलेगा यह सोच अब दिल रोता 

जब बिस्तर गीला होता था तो गीले में खुद सोती थी 

रो न जाये मेरा बेटा सारा सुख अपना खोती थी 

ऐसी थी वो मेरी माँ ...

उजड़ गई अब मेरी बगिया कहाँ गई वो प्यारी मईया 

अब मुझको लगता है ऐसा भव सागर में डूबी है नईया 

भव सागर भी पार करा दे ऐसी थी वो मेरी माँ ...

मैं बालक छोटा सा बच्चा माँ का प्यार था कितना अच्छा 

पल भर में अब मैं डर जाऊँ बिन माँ कौन करे मेरी रक्षा 

जिसके प्यार से डर न लगता ऐसी थी वो मेरी माँ ...

माँ का प्यार अब मिल न सकेगा माँ की याद अब मिट न सकेगी 

फट भी जाये अब ये धरती और झुक भी जाये ये 

अटल हिमालय चली गई जो मेरी माँ अब वो मुझको कहाँ मिलेगी 

माँ से मेरा जीवन पूरा माँ बिन अब मैं हुआ अधूरा 

मत दो मुझको झूठा दिलासा माँ बिन प्यार नहीं है पूरा 

फूलों से कोमल मेरी माँ कलियों से प्यारी मेरी माँ 

जिसे देख मेरा दुःख उड़ जाता ऐसी थी वो मेरी माँ...

सारे तीर्थ और सारे धाम तो माँ के ही चरणों में हैं 

स्वर्ग और जीवन है वहां माँ के चरणों की छाँव है जहाँ 

जिन चरणों में चारो धाम ऐसी थी वो मेरी माँ ...

दुआ है मेरी बस इतनी मिले जो दूजा जन्म मुझे 

तू ही मेरी माँ बने और तेरी कोख ही मिले मुझे !

 


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