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Chandra Prabha

Inspirational

4  

Chandra Prabha

Inspirational

मेरे बाऊजी

मेरे बाऊजी

2 mins
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    बहुत जल्दी ही हमें छोड़ गए बाऊजी

    पर याद आती है आपकी वह गोद। 

    जाड़ों में सुबह सुबह जल्दी उठकर,

    छिपकर जिसमें बैठ जाते थे। 

    मॉं बुलाती रहती थीं कि आओ,

    सुबह का कुल्ला मंजन कर लो। 

    पर हम आपकी गोद में छिपकर बैठे रहते ,

    आप भी हमें रज़ाई में दुबका लेते। 

    फिर प्यार से हँसकर मॉं से कहते,

    शेरों के मुँह किसने धोये हैं!

    बाद में हमें समझा कर कहते,

    सुबह कुल्ला मंजन ज़रूर करना है। 


    जब भी हमें कुछ मंगाना होता,

    ना आपने कभी नहीं कहा। 

    बहुत प्यार से पूछते क्या खाओगे?

    हम अपनी अपनी पसंद बताते ।

    मेरे लिए मीठे मीठे अंगूर,

    एक बहिन के लिए मूंगफली,

    दूसरी बहिन के लिए घिया की लौज,

    रोज़ मँगाकर दुलार से हमें खिलाते ।


    याद नहीं कभी डॉंटा हो,

    हर बार प्यार से ही बुलाया। 

    पढ़ाई में भी मदद की,

    हमारी अंग्रेज़ी भी सुधारी। 

    पढ़ने लिखने का शौक़ जगाया। 

     हर काम ठीक से करना सिखाया। 

     कल्याण, चंदामामा ,सरस्वती,

     बालक ,चंद्रकांता संतति,

     गीता ,रामायण ,महाभारत,

     किताबों से भरी थी आलमारी। 


     हमें भजन और प्रार्थना याद कराते,

     याद करने पर प्रशंसा करते ।

     घर में जन्माष्टमी मनती धूम धाम से,

    और झॉंकी सजती श्याम की जतन से।

     सॉंजी बनती, नौरते बोये जाते,

     दशहरा भी पूजा जाता चाव से। 

     रात में भगवान् के स्वरूप रामलीला के

     घर में आते और आरती होती भाव से।

     हमेशा हमारा मनोबल बढ़ाया,

     आत्म विश्वास रखना सिखाया,

     सद्व्यवहार का सबक सिखाया,

     छोटों को प्यार करना सिखाया। 


    खाना पकाना भी सिखाया,

    रज़ाई में तागे डालना भी सिखाया,

    हमारे बुने स्वेटर को ख़ुशी से पहना,

    अपने हाथ से काम करना सिखाया,

    सिलाई बुनाई कढ़ाई घर के काम ,

    सब में स्वावलंबी रहना सिखाया। 

    घर में सेवकों की कमी नहीं थी,

     पर सबको आदर मान देना सिखाया। 


    पैरों में खड़ाउंग पहनते ,

    भगवत् चरणों में शीश नवाते,

    रसोई की क्यारी में बैठकर

    सबके साथ भोजन करते। 


    कथा कीर्तन में सपरिवार जाते ,

    हमारे साथ बैठकर कथा सुनते,

    गंगास्नान के लिए भी सपरिवार जाते ,

    हर गर्मियों में गंगा किनारे डेरा लगता।

    वहीं हम सब मिल कर रहते,

    गंगा किनारे बैठकर आलू पूरी खाते ,

    और गंगाजल में ठंडे किये आम खाते,

    गंगा में तैरने का भी आनंद लेते। 


     पेशावरी तांगे में सबके साथ,

     सुबह शाम अपने बाग़ में जाते ।

     तरह तरह के पेड़ पौधे लगवाते ,

     हर मौसम की सब्ज़ी लगवाते ।

     सब तरह के फल फूल,

     हर मौसम में हर समय मिलते ।

     हम सबको कर्मठता का उपदेश मिला,

     भगवान् के चरणों में प्रेम मिला।


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