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Prem Lata Anand

Inspirational

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Prem Lata Anand

Inspirational

मेरा साया

मेरा साया

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एक दिन

मैं जा रही थी,अपने स्वपन-महल में

खोई सी,अंजान सी

बस

मस्त थी अपनी मस्ती में

अचानक

सुनाई दी ,एक क्रोध भरी चीख

जिसका पीछा करती हुई मैं

पहुंच गई एक बस्ती के करीब

देखा एक दारुण दृश्य

कोने में अबला बैठी थी

डरी हुई,सहमी सी

बेहाल थी, परेशान थी,

चेहरे पर उसके क्रोध भबक रहा था

पर

आँखों में विश्वास चमक रहा था

देख कर उसकी यह अजीब सी दशा

पल भर में उतर गया मेरी मस्ती का नशा

मैं पल भर को रुकी

पूछा उससे

आत्म-विश्वास से भरी हो ! पर बैठी हो व्यथित सी...

करुणा के शब्द सुन कर,उसकी आंखों में अंगारे दहके

बोली

कौन हो तुम ॽ

आज के युग में ऐसी दशा किसकी होती है ?

क्या जी रही हो तुम बहकी बहकी

पर,

मुझमें साहस है,आशा है, जीने की आस है

देखती हूं,कब तक जिंदा रहती है

मनुष्य में दूसरे को दबोचने की प्यास है

मैं यूं मर नहीं सकती

क्योंकि मेरे चाहने वाले अब भी हैं

चाहने वालों का हश्र एेसा ना होगा

चमकेंगें वे जब इंसान के लिए सब कुछ पैसा ना होगा

देख कर ,यह हिम्मत,यह हौंसला और जीने की चाह

मैं बोली

तूं अबला नहीं मैं जानती हूं

तूं हालात की मारी है,मैं मानती हूं

तूं बता मुझे अपना नाम,

शायद मैं कर सकूं तेरे लिए कुछ काम

वह संकुचाई सी,लज्जाई सी

बोली

मैं ईमानदारी हूं

अगर साहस है तो पकड़ लो मेरा हाथ

करो वायदा छोड़ोगी नहीं कभी मेरा साथ

मैं अभी कुछ सोच ही रही थी

उसने झंझोरा

कहा

गर तुम पकड़ोगी मेरा हाथ

तुम्हें फायदा ही फायदा है

यह कोरी बात नहीं,

मेरा तुमसे पक्का वायदा है

उस सपने से जगने पर भी

मैंने उसको नहीं भुलाया

संग-संग अब हम चलते हैं

मैं शरीर वो मेरा साया ।



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