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संजय कुमार

Abstract

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संजय कुमार

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मेरा प्यार

मेरा प्यार

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ऐ चाँद रुक कहाँ छिपने जा रहा है

लगता है,मुझे मेरा प्यार नजर आ रहा है।

तू छिप जा, मुझे गम नहीं तेरे छिप जाने का

गम है तो बस गम है,मेरे प्यार के छिप जाने का।

तेरा ये चमक भी

मेरे यार के चमक जैसा ही दिखता है

फर्क है, तुझमें और मेरे प्यार में

की तू आकाश में रहता है, और

मेरा प्यार मेरे दिल में रहता है।

मैं खोकर जिस प्यार की याद में

जिसे चाँद समझ बैठा

वक्त का तकाजा भी क्या ख़ूब है

जी वो तो मेरा प्यार ही निकला।


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