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Mamta Singh Devaa

Abstract

4  

Mamta Singh Devaa

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" मेरा मैं खुद पे मरता है "

" मेरा मैं खुद पे मरता है "

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कोई इसपे मरता है 

कोई उसपे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई गोरे रंग पे मरता है

कोई गजब ढ़ंग पे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई ख़ास शख्स पे मरता है

कोई चेहरे के नक्श पे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई किसी की चाल पे मरता है

कोई किसी के हाल पे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई लंबे बाल पे मरता है

कोई लाल गाल पे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई मोहनी हँसी पे मरता है

कोई प्यारी सखी पे मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई नज़ाकत पर मरता है

कोई नफ़ासत पर मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई सुंदर पहनावे पर मरता है

कोई झूठे दिखावे पर मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


कोई पैसे वाली पर मरता है

कोई कमाने वाली पर मरता है

सबकी ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ,


मन तो बस मन की सुनता है

जब देखो हर बात पे मरता है

मन की ऐसी की तैसी

मेरा मैं खुद पे मरता है ।


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