मेरा इम्तहान
मेरा इम्तहान
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तू मेरे सब्र का इम्तहान ले,
मैं तेरे सब्र का इम्तहान लूँ।
ना तू लब खोले ना मैं कुछ बोलूँ,
बस आँखों ही आँखों में बात होने दे।।
तू कुछ समझे मैं कुछ समझूँ,
तू भी खुशफ़हमी में जी ले
मैं भी खुशफ़हमी में जी लूँ।।
उम्र तमाम यूँ ही गुज़रने दे
सफ़र यूँ ही कटने दे।
अब न तू मेरा इम्तहान ले
ना मैं तेरा इम्तहान लूँ।।